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20 Jun 2018 · 1 min read

ग़ज़ल

कर्ज था कोई जो उतार आए
जिंदगी तुझको हम गुज़ार आए।

हमने तो कोई भी खता ना की
दर्र जितने मिले उधार आए।

हम भी शिकवे गिले भुला देंगें
तू अगर पास एक बार आए।

ख्वाब बस ख्वाब ही रहे मेरे
यूँ तो कहने को बार बार आए।

मैं तेरे सारे गम उठा लूँगी
तेरी ज़ानिब से इख्तियार आए।

कितनी उम्मीद से गए थे मगर
आपके दर से बेकरार आए।

इश्क शतरंज की तरह था तेरा
जान पे दिल था हम सौ हार आए।

दिल लगाने की ये सज़ा है निधि
चैन आए ना अब करार आए।

निधि मुकेश भार्गव

1 Like · 254 Views
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