ग़ज़ल
ग़ज़ल
मुहूर्तों की ज़रूरत ही नहीं है दिल जहाँ मिलते
मुहब्बत हो ज़मीं बंज़र में भी हैं गुल यहाँ खिलते/1
हँसो दिल से मनाओ पर्व पर तुम वक़्त मत देखो
मिला हर पल तुम्हें शुभ है अँधेरों में नहीं पलते/2
बड़ा रक्षा-बंधन उत्सव बहन-भाई मुहब्बत का
चमक मन राखियों के प्यार में रक्षक बने हँसते/3
बहन आई लिए मंगल करो सत्कार हँसकर तुम
दो नज़राना मगर दिल से ख़ुशी के दीप तब जलते/4
तुम्हारा क्या हमारा क्या दिया रब ने कृपा करके
मगर दिल चाहिए बिन दिल किसी को दे नहीं सकते/5
हज़ारों हैं लिए पैसा ख़ुशी पर पा नहीं सकते
बिना धन ज़िंदगी में लोग कुछ हैं झूम के चलते/6
बहन सबकी बराबर हैं हिफ़ाज़त नित किया करना
ज़रा इंसानियत का पाठ भी ‘प्रीतम’ चलें पढ़ते/7
#आर. एस. ‘प्रीतम’
#सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल