ग़ज़ल
पुराने घर में यादों के फसाने पढ़ रहा हूँ मैं
मुहब्बत के हिफाज़त के तराने पढ़ रहा हूँ मैं/1
खिलौने टूट कर भी आज बचपन को दिखाते हैं
जिन्हें छूकर ही बीते पल सुहाने पढ़ रहा हूँ मैं/2
पुराने घर में रिश्तें थे दिलों के रूह से हँसते
कहीं खोए कहीं भटके ज़माने पढ़ रहा हूँ मैं/3
कभी कच्चे मक़ानों में जुड़े थे तार पक्के थे
अभी पक्के मक़ानों में लजाने पढ़ रहा हूँ मैं/4
पुराना है ख़रा सोना नया संस्कार है खोना
कहीं पाये कहीं खोये ख़ज़ाने पढ़ रहा हूँ मैं/5
पुराने घर पुराने लोग थे मज़बूत तन-मन से
नये धन ने बनाये जो सयाने पढ़ रहा हूँ मैं/6
कहाँ सागर किनारा वो जहाँ इंसान रहते हैं
मिलूँगा पार ‘प्रीतम’ कर सफ़ीने पढ़ रहा हूँ मैं/7
#आर. एस. ‘प्रीतम’
#स्वरचित रचना