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23 Aug 2023 · 1 min read

ग़ज़ल

पुराने घर में यादों के फसाने पढ़ रहा हूँ मैं
मुहब्बत के हिफाज़त के तराने पढ़ रहा हूँ मैं/1

खिलौने टूट कर भी आज बचपन को दिखाते हैं
जिन्हें छूकर ही बीते पल सुहाने पढ़ रहा हूँ मैं/2

पुराने घर में रिश्तें थे दिलों के रूह से हँसते
कहीं खोए कहीं भटके ज़माने पढ़ रहा हूँ मैं/3

कभी कच्चे मक़ानों में जुड़े थे तार पक्के थे
अभी पक्के मक़ानों में लजाने पढ़ रहा हूँ मैं/4

पुराना है ख़रा सोना नया संस्कार है खोना
कहीं पाये कहीं खोये ख़ज़ाने पढ़ रहा हूँ मैं/5

पुराने घर पुराने लोग थे मज़बूत तन-मन से
नये धन ने बनाये जो सयाने पढ़ रहा हूँ मैं/6

कहाँ सागर किनारा वो जहाँ इंसान रहते हैं
मिलूँगा पार ‘प्रीतम’ कर सफ़ीने पढ़ रहा हूँ मैं/7

#आर. एस. ‘प्रीतम’
#स्वरचित रचना

Language: Hindi
1 Like · 125 Views
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