#ग़ज़ल
#ग़ज़ल
■ काली शब ने दिखलाए हैं वो मंज़र…!
【प्रणय प्रभात】
● जो सबकी नज़रों से छिप कर निकलेगा।
उसकी आस्तीन से खंज़र निकलेगा।।
● मेरा क़त्ल ज़रूरी है तो ये लिख लो।
मेरा क़ातिल मेरा रहबर निकलेगा।।
● क़ौमी यक़ज़हती की बातें बन्द करो।।
यहां से नेज़े लेकर लश्कर निकलेगा।।
● रस्सी है रस्सी है तुम ही कहते थे।
हमको कल ही पता था अजगर निकलेगा।।
● शाहिद झूठ बोलने में गर अव्वल है।
तो फिर तय है क़ातिल बचकर निकलेगा।।
● उसने अपना सब कुछ जिसको माना था।
पता न था शैतान से बदतर निकलेगा।।
● काली शब ने दिखलाए हैं वो मंज़र।
सूरज भी अब तो डर-र्डर कर निकलेगा।।
● शीशे के घर के जितने वाशिंदे हैं।
उनकी मुट्ठी से भी पत्थर निकलेगा।।
● जब-जब उन आंखों से बरसेगा सावन।
तब-तब मेरा दामन भी तर निकलेगा।।
★संपादक/न्यूज़&व्यूज़★
श्योपुर (मध्यप्रदेश)