#ग़ज़ल-
#ग़ज़ल-
■ मेरे ज़ख़्म टटोल रहा था सन्नाटा।।
【प्रणय प्रभात】
– राज़ दिलों के खोल रहा था सन्नाटा।
मैने देखा बोल रहा था सन्नाटा।।
– नींद उदासी ख़्वाब तसव्वुर तन्हाई।
सब पलकों पे तोल रहा था सन्नाटा।।
– औरों को चुभता होगा लेकिन मुझमें।
बस मिसरी सी घोल रहा था सन्नाटा।।
– हर जगहा महफ़िल थी पर मेरे दिल में।
आवारा सा डोल रहा था सन्नाटा।।
– शायद इनमें थोड़ी आहें बाक़ी हों।
मेरे ज़ख़्म टटोल रहा था सन्नाटा।।
– कुछ गूंगे अहसास थे कुछ बहरे नाते।
सन्नाटे से बोल रहा था सन्नाटा।।
– आंसू आहें बेच के हमने मोल लिया।
सदियों से अनमोल रहा था सन्नाटा।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)