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23 Sep 2016 · 1 min read

ग़ज़ल

ये नफरत का असर कब तक रहेगा
है सहमा सा नगर कब तक रहेगा

हक़ीकत जान जाएगा तुम्हारी
जमाना बेखबर कब तक रहेगा

बगावत लाजमी होगी यहाँ पर
झुका हर एक सर कब तक रहेगा

हैं इक दिन हार जाएगी ये लड़कर
हवाओं का ये डर कब तक रहेगा

जमीं पर लौट के आना ही होगा
बता आकाश पर कब तक रहेगा

यहाँ फिर लौट आएँगी बहारे
मेरा सूना सा घर कब तक रहेगा

लगा लो फिर सुनीता बेल बूटे
पुराना सा शज़र कब तक रहेगा

सुनीता काम्बोज
Sunitakamboj35@gmail.com

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