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19 Jun 2018 · 1 min read

ग़ज़ल

ग़ज़ल

दिल अगर मचले तो जज़्बात लिखने लगती हूँ
आँख रोती हैं तो आघात लिखने लगती हूँ

रोज़ दिखलाती है जादूगरी क़लम मेरी
चंद अल्फ़ाज़ में हालात लिखने लगती हूँ

दर्द को लिखती हूँ मैं अपना मुक़द्दर लोगों
ग़म को दुनिया की मैं सौगात लिखने लगती हूँ

भूल जाती हूँ हरइक शख़्स का गुनाह कभी
जि़द पे आती हूँ तो हर बात लिखने लगती हूँ

हिज्र में याद तेरी भूले से आ जाये तो
तेरे संग बीते जो लम्हात लिखने लगती हूँ

इस क़दर टूट चुकी हूँ मैं ग़मे-दुनिया से
दिन को अक्सर मैं ‘निधि’ रात लिखने लगती हूँ

1 Like · 1 Comment · 235 Views
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