#ग़ज़ल
#ग़ज़ल
■ पत्थर की दीवारें अच्छी…।
【प्रणय प्रभात】
★ जाते हुए किसी पतझड़ से,
आती हुई बहारें अच्छी।
प्यार में गुस्सा गुस्से में कुछ,
चुहल भरी मनुहारें अच्छी।।
★ इक दूजे का हाथ थाम के,
सारी उम्र बिता देती हैं।
हाड़-मांस के इंसानों से,
पत्थर की दीवारें अच्छी।।
★ एक ख़ला से इस जीवन की,
दमघोंटू ख़ामोशी में।
बेमतलब के गूंगेपन से,
तक़रीरें तक़रारें अच्छी।।
★ बिना किसी झगड़े-फ़साद के,
बैठ सकें पंछी सारे।
किस मतलब के कोठी-बंगले,
वो गुम्बद मीनारें अच्छी।।
★ चारों ओर तबाही वाले मंज़र हों मौजूद जहां।
सोच-समझ के ये बतलाओ।
कौन कहे बौछारें अच्छी??
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)