#ग़ज़ल-
#ग़ज़ल-
■ इंकार कर सकता हूँ मैं…!!
【प्रणय प्रभात】
● मत समझना सिर्फ़ तुमको
प्यार कर सकता हूँ मैं।
हो कोई इसरार तो,
इंकार कर सकता हूँ मैं।।
● संग बन सकते हैं मेरे,
लफ़्ज़ भी दिल की तरह।
अपनी ख़ामोशी को इक,
दीवार कर सकता हूँ।।
● एक दरिया सा हुनर है,
एक दरिया सा जुनून।
हर तरह की राह को,
हमवार कर सकता हूँ मैं।।
● गुम गई आवाज़ लेकिन,
साथ में अल्फ़ाज़ हैं।
अपने हर एहसास का,
इज़हार कर सकता हूँ मैं।।
● आज जो तुझसे मिला,
वो रख लिया तेरे लिए।
ऐ ज़माने कल तुझे,
बेज़ार कर सकता हूँ मैं।।
● जानता हूँ नासमझ है,
ना समझना है जिसे।
बस इशारों में उसे,
बेदार कर सकता हूँ मैं।।
★संपादक/न्यूज़&व्यूज़★
श्योपुर (मध्यप्रदेश)