ग़ज़ल
सच बयानी का नहीं बस चुप्पियों का दौर है
अब हमारे शह्र में ख़ामोशियों का दौर है
चैनलों पर लड़ रहे हैं लोग कुत्तों की तरह
देखकर लगता है जैसे गालियों का दौर है
सच बताया जा रहा है आजकल अफ़वाह को
न्यूज़ में अफ़वाह वाली सुुुर्ख़ियों का दौर है
बिक रहा है घर मगर ताली बजाओ साथियों
अपनी ही बर्बादियों पर तालियों का दौर है
हाथ फैलाने से कोई हक़ नहीं देगा तुम्हें
गिड़गिड़ाने का नहीं ये मुट्ठियों का दौर है
काले बादल जैसा पसरा डर का साया हर तरफ
लोग घर में छिप गये हैं बिजलियों का दौर है
पूछना बिल्कुल मना है घर के मुखिया से सवाल
‘नूर’ कुछ मत बोल तानाशाहियों का दौर है
✍️जितेन्द्र कुमार ‘नूर’