ग़ज़ल
122 122 122 12
झुकी है नज़र कुछ सँभलने तो दो।
ज़रा देर हमको ठहरने तो दो।
अभी प्यार से मन भरा ही नहीं
चरागों को थोड़ा सा जलने तो दो।
जवाँ हसरतें दिल मचलने लगा
घड़ी दो घड़ी साथ रहने तो दो।
मुहब्बत हमें आजमाने लगी
शमा को ज़रा सा पिघलने तो दो।
हवाओं का रुख भी बदलने लगा
हमें टूटकर भी बिखरने तो दो।
ख़बर है हमें जी न पाएँगे हम
वफ़ा में हमें आप मरने तो दो।
भरे अश्क आँखों में ‘रजनी’ कहे
कहीं वक्त को भी ठहरने तो दो।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
महमूरगंज, वाराणसी (उ.प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर