$ ग़ज़ल//
#ग़ज़ल
#वज़्न – 1222 – 1222 – 1222 – 1222
अतिथि सत्कार कर हँसके बड़ा उपकार मिलता है
मनुज के भेष में भगवान का दीदार मिलता है/1
करो सेवा मिले मेवा कथन झूठा नहीं है ये
तुम्हारे प्यार के बदले तुम्हें ये प्यार मिलता है/2
दुवाओं का असर इतना दवा भी हार जाती है
रुहानी प्रीत का जब भी किसी को सार मिलता है/3
ख़ुदा क़िरदार देता जो निभाना आपको होगा
भुलाकर रूह की बातें मनुज लाचार मिलता है/4
करोगे छल मिलेगा छल नहीं ये आज तो फिर कल
किये कर्मों का फल से भूलना मत तार मिलता है/5
कहीं गूँजी ग़ज़ल होगी कहीं होता असर होगा
मयूरा नृत्य बादल शोर का आधार मिलता है/6
तुम्हारे मौन का पर्दा निग़ाहें खोलती ‘प्रीतम’
छिपा इनमें मुहब्बत का सुनो इज़हार मिलता है/7
#आर. एस. ‘प्रीतम’
#स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल