ग़ज़ल
बह्र-
1222 1222 122
काफ़िया-आ
रदीफ़-करेंगे
तुम्हारी याद में रोया करेंगे।
समंदर आँख से छलका करेंगे।
फ़रेबी आइना भी हो गया है
बताओ किससे हम शिकवा करेंगे।
फ़कत अहसास बन रहना हमेशा
सुबह-ओ-शाम हम सज़दा करेंगे।
मिलोगे जब कभी तन्हाई में तुम
लिए आगोश में महका करेंगे।
निगाहों में बसाकर यार तुमको
तसव्वुर ख़्वाब में देखा करेंगे।
तुम्हारे ग़म को अपना ग़म समझकर
निभाएँगे वफ़ा वादा करेंगे।
कसम खाकर कहे ‘रजनी’ तुम्हारी
मुहब्बत को नहीं रुस्वा करेंगे।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
महमूरगंज, वाराणसी।(उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर