ग़ज़ल
छोटी बहुत ही लगती है तब कद में शायरी
होती है जब किसी की खुशामद में शायरी
पहले विधान बनते थे होती थी मंत्रणा
अब हो रही है देश की संसद में शायरी
जब सब के हक़ की बात उठाने लगी ग़ज़ल
कहने लगे हैं वो कि रहे हद में शायरी
जब एक दिल की आग लगे दूसरे में तो
समझो कि कामयाब है मक़सद में शायरी
जलता है ख़ून दिल का तो बनता है शेर ‘नूर’
फलती नहीं है आम या बरगद में शायरी
✍️ जितेन्द्र कुमार ‘नूर’
असिस्टेंट प्रोफेसर
डी ए वी पी जी कॉलेज आज़मगढ़