ग़ज़ल
विषय:-*नदियाँ किनारे*
विधा:- ग़ज़ल
ग़ज़ल
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चलो सजना नदियाँ किनारे हम,
इक दुजे को फिर से निहारे हम।
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दुश्मन बना है जमाना चलो चले,
गिरा दे नफरत की ये दिवारे हम।
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तुम्हे गिला है ना मुझे कोई गिला,
चलो बनाऐं प्यार की मिनारे हम।
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सजाऐ शबनम से आशियाने को,
खिले गुल, लाऐ ऐसी बहारे हम।
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मिला है मुझको जो प्यार तुम्हारा,
टुटे ना कभी मिल कर संवारे हम।
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सुनो,दो बदन, इक जहान है हम,
बने इक दुजे के ‘जैदि’ सहारे हम।
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शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
बीकानेर (राज).