ग़ज़ल
काँच गिरे ज्यूँ हाथों से यूँ खोया है कुछ लोगों को
भूले से इक नग़्मे सा भी गाया है कुछ लोगों को
गैरों के शानों पे झुकते लोग बहुत मिल जाते हैं
हमने अपनों से शरमाते देखा है कुछ लोगों को
खुदगर्ज़ी का आँचल ओढ़े दिखता है जब इश्क़ यहाँ
दिल ने ऐसे मौकों पर फिर सोचा है कुछ लोगों को
जो सबसे है पार सदा ही, मोह भले ही माया हो
उसने भी इस जग में आकर चाहा है कुछ लोगों को
इस दुनिया में जी लेने को कुछ लोगों को याद रखा
और फिर जीने की ख़ातिर ही भूला है कुछ लोगों को
यूँ तो हर शय इस दुनिया की बेमानी सी लगती है
हाँ पर हैरानी से अक़्सर देखा है कुछ लोगों को
कोई इंसां इस दुनिया में बिन कारण कब मिलता है
भाग्य कभी हतभाग्य हमारा लाया है कुछ लोगों को
सुरेखा कादियान ‘सृजना’