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13 Jan 2023 · 1 min read

ग़ज़ल

ग़ज़ल

मुहब्बत की नज़र कोई नहीं है
मकाँ हैं खूब घर कोई नहीं है//1

निग़ाहों ने हमें जो सच कहा है
ज़ुबाँ का फिर असर कोई नहीं है//2

ख़ुदा ही साथ देगा जो हमारा
किसी का ख़ौफ़ डर कोई नहीं है//3

हमें अब आजमाना छोड़ भी दो
विजय का दर इधर कोई नहीं है//4

ज़मीं अपनी गगन अपना हुआ है
अधूरा अब सफ़र कोई नहीं है//5

मुहब्बत जीत सकती है दिलों को
बिना इसके हुनर कोई नहीं है//6

बिना मकसद फला-फूला ज़मीं पर
सुनो ऐसा शजर कोई नहीं है//7

मिटा दो वैर की तुम भावना अब
इसे चाहे ज़िगर कोई नहीं है//8

मिलो ‘प्रीतम’ सभी से दिल लगाकर
बड़ा दिल से इतर कोई नहीं है//9

#आर. एस.’प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल

Language: Hindi
2 Likes · 158 Views
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