ग़ज़ल
ग़ज़ल
मुहब्बत की नज़र कोई नहीं है
मकाँ हैं खूब घर कोई नहीं है//1
निग़ाहों ने हमें जो सच कहा है
ज़ुबाँ का फिर असर कोई नहीं है//2
ख़ुदा ही साथ देगा जो हमारा
किसी का ख़ौफ़ डर कोई नहीं है//3
हमें अब आजमाना छोड़ भी दो
विजय का दर इधर कोई नहीं है//4
ज़मीं अपनी गगन अपना हुआ है
अधूरा अब सफ़र कोई नहीं है//5
मुहब्बत जीत सकती है दिलों को
बिना इसके हुनर कोई नहीं है//6
बिना मकसद फला-फूला ज़मीं पर
सुनो ऐसा शजर कोई नहीं है//7
मिटा दो वैर की तुम भावना अब
इसे चाहे ज़िगर कोई नहीं है//8
मिलो ‘प्रीतम’ सभी से दिल लगाकर
बड़ा दिल से इतर कोई नहीं है//9
#आर. एस.’प्रीतम’
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