ग़ज़ल
आया नहीं उनको कभी जीना यहॉं संसार में
इक उम्र गंवा देते हैं जो चार दिन के प्यार में
लड़नी पड़े जब जंग और मुर्शिद खड़ा हो सामने
मिलता किसे है फिर सुकूँ उस जीत में या हार में
संजो रही हूँ अब तेरा हर झूट छल धोका कपट
वो प्यार और एतबार तो बिखरे पड़े हैं दार में
मुझको मिटाने के लिये बस था तुम्हारा प्यार ही
तुमने मुझे धोका दिया यूँ ही सुनो बेकार में
सौ ज़ख्म खाये थे मगर टूटी नहीं पहले कभी
कुछ तो नयी सी बात थी तेरे किये इक वार में
तेरे बिना ये मर्ज़ की सारी दवा बेकार हैं
दिखता नहीं कोई असर कब से पड़े बीमार में
सुरेखा कादियान ‘सृजना’