ग़ज़ल
मस्ती के आलम का इक नाता हूँ|
मैं तो दिल के भावों को गाता हूँ|
रातों को आँखों में आँसू लेकर,
यादों का पट मैं भीगों जाता हूँ|
जीने मरने की तैयारी कैसी,
जब यूँ ही सबसे मैं मिल अाता हूँ|
ये मेरे अरमानों की बस्ती है,
तन्हा लोगों को अक्सर भाता हूँ|
मेरी चाहत चुभती है खंजर सी,
जिनको यादों के घर में पाता हूँ|
दिल की लहरों को है मेरा सजदा,
आलोकित हो सब कुछ अपनाता हूँ|
अपनों के बिन गम भर कर ह्रदय में,
मैं अक्सर ही व्याकुल हो जाता हूँ|
हँस-हँस कर तो सब कुछ कहता रहता,
फिर अंतस में अपने खो जाता हूँ|
सुन कर अपने ही दिल की बातों को,
यादों का सारा जग बिसराता हूँ||
©अतुल कुमार यादव.