ग़ज़ल
#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल
जो दूसरों के गमों को चुरा के बैठ गए ।
हमारे दिल में वही मुस्कुरा के बैठ गए ।
जला था जिस्म हवस की लगी जो चिंगारी,
बुझी न आग तो हम छटपटा के बैठ गए ।
हमें था खूब भरोसा कि साथ देंगे वो,
जरूरतों पे वही दूर जा के बैठ गए।
नसीब जागे हुआ वक्त हम पे मेहरबां,
जो ख़्वाब रंगते वही पास आ के बैठ गए।
थके सफर में तो थम कर, शजर की छांव पकड़,
जरा सुकून की चादर बिछा के बैठ गए ।
नजर मिला के नजर से किया बड़ा सौदा,
गवां के चैन अमन दिल लुटा के बैठ गए ।
दुकान खोल के “अवधेश” बेचते खुशियां,
खरीददार ही दुख में डुबा के बैठ गए ।
अवधेश कुमार सक्सेना 11072022
शिवपुरी, मध्य प्रदेश