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11 Jul 2022 · 1 min read

ग़ज़ल

#ग़ज़ल #अवधेश_की_ग़ज़ल

जो दूसरों के गमों को चुरा के बैठ गए ।
हमारे दिल में वही मुस्कुरा के बैठ गए ।

जला था जिस्म हवस की लगी जो चिंगारी,
बुझी न आग तो हम छटपटा के बैठ गए ।

हमें था खूब भरोसा कि साथ देंगे वो,
जरूरतों पे वही दूर जा के बैठ गए।

नसीब जागे हुआ वक्त हम पे मेहरबां,
जो ख़्वाब रंगते वही पास आ के बैठ गए।

थके सफर में तो थम कर, शजर की छांव पकड़,
जरा सुकून की चादर बिछा के बैठ गए ।

नजर मिला के नजर से किया बड़ा सौदा,
गवां के चैन अमन दिल लुटा के बैठ गए ।

दुकान खोल के “अवधेश” बेचते खुशियां,
खरीददार ही दुख में डुबा के बैठ गए ।

अवधेश कुमार सक्सेना 11072022
शिवपुरी, मध्य प्रदेश

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