ग़ज़ल
आना जाना सब का चलता रहता है
मंजिल से पथ सदा यही तो कहता है
सबका मन၊ तिनके के जैसे होता है
हवा जिधर की होती उधर ही बहता है
एक दूजे से रीत यही व्यवहार की
जितना देता दर्द वो उतना सहता है
इच्छाओं का सागर सभी में होता है
सब कुछ मिलता नहीं जो जैसा चहता है
महज़ अन्धेरे को कोसा मत कीजिए
वहीं रोशनी करता है जो दहता है