इश्क में आफरीन लगती है।
इश्क में आफरीन लगती है।
वह बला की ह़सीन लगती है।
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जब पहनती है पीला जोड़ा वह।
सरसों वाली ज़मीन लगती है।
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वह समझ जाती है बिन बोले ही।
वो हसीना ज़हीन लगती है।
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देखकर उसको ग़ज़ल लिखता हूं।
वह मुझे बेहतरीन लगती है।
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मैं उसे कैसे भूल सकता हूं।
दिल में मेरे मकीन लगती है।
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उसका दीदार बहुत मुश्किल है।
चर्ख़ की जां नशीन लगती है।
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सगीर उस पर है ऐतमाद बहुत।
वो परी महजबीन लगती है।
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सगीर अहमद सिद्दीकी खैरा बाज़ार बहराइच