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3 Sep 2021 · 1 min read

ग़ज़ल

कविता सुनाने जा रहा हूँ मैं
———————————
सोए जनों को अब जगानें जा रहा हूँ मैं
नुसख़ा मसालेदार लेकर आ रहा हूँ मैं

हर आदमी से तालियाँ बजवाके रहूँगा,
तत्काल ही कविता सुनाने जा रहा हूँ मैं

है कौम जो हिंदू ,मुसलमा, सिक्ख, ईसाई
सबके हृदय में रूप हरि का पा रहा हूँ मैं

हरि ही खुदा हैं, गॕार्ड हैं, वाहेगुरू भी हैं
बँटना नहीं इंसान तुम बतला रहा हूँ मैं

हम घूस, घोटालों की खुजलियों से तंग हैं
मजबूर होकर हर समय खुजला रहा हूँ मैं

इस मुल्क में लाखों दवा खुजली की बनी है
फिर भी नहीं राहत किसी से पा रहा हूँ मैं

जमकर हजम करना बफर सिस्टम सिखाता है
ग़म खा रहा हूँ इसलिए कम खा रहा हूँ मैं

अब गायकी में पूछ कोयल की कहाँ अवधू
मैं बीस हूँ गदहों की तरह गा रहा हूँ मैं

अवध किशोर ‘अवधू’
मो.न.9918854285

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