ग़ज़ल
ग़ज़ल
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जरा-सी बात पर हमको रुला बैठे हो,अच्छा है!
हमें अपनी निगाहों में गिरा बैठे हो,अच्छा है!
तुम्हारे चैट तक अब भी जबानी याद हैं हमको
उधर तुम यार हमको ही भुला बैठे हो,अच्छा है!
तुम्ही अपना भी कहते हो,तुम्ही नाराज़ हो हमसे
अचानक हाथ तुम अपना, छुड़ा बैठे हो,अच्छा है!
मोहब्बत के भरोसे ही हम अब तक यार जिंदा थे
इसे भी अब तमाशा तुम बना बैठे हो, अच्छा है!
हमारे नाम के आगे तुम्हारा नाम आना था
ये किसके नाम की मेंहदी रचा बैठे हो, अच्छा है!
©️ संदीप राज़ आनंद