ग़ज़ल
आज कल हम तेरे पहलू में जो कम होते हैं।
ये भी अहसान रकीबों पे सनम होते हैं।
सोच कर इस लिए सीने से लगा लेते हैं।
गम के मारों के मुकद्दर में ही गम होते हैं ।
एक वादे पे गुजर जाती हैं उम्रें यूं हीं।
कितने नादान महब्बत के भरम होते हैं।
लोग कहते है गजलगौ हूं मगर सच ये है।
तेरे अफसाने ही कागज पे रकम होते हैं ।
हिज्र की शब तेरे खत दिल से लगा कर जानाँ।
तेरी यादो में सिसकते हुए हम होते हैं ।
पत्थरो से भी निकलता है लहू मजनू का।
हाय लैला तेरे कुछ यूं भी करम होते हैं ।
तू तो कहती थी तेरी आखरी ऊमीद हूँ मैं ।
क्यो भला किस लिए गैरो पे करम होते हैं।
आइना दिल का जो टूटा तो समझ मे आया।
दिल में बसते हैं जो पत्थर के सनम होते हैं।
इकबाल तन्हा