ग़ज़ल
हमारे दिल में ही रह जाओ दो घड़ी के लिए।
बस इतना काफी है फिर अपनी जिंदगी के लिए।
मैं चाहता था मेरे साथ मुस्कुराता वो।
लिपट के मुझसे जो रोता रहा किसी के लिए।
तुम्हारे वास्ते खुद को मिटा लिया मैंने।
करूं मैं और बता क्या तेरी खुशी के लिए।
कभी कभी तो जुनूं इस कदर भी बढ़ता है।
कुरेद लेते हैं जख्मों को ताजगी के लिए।
गमों की सख्त अंधेरी सियाह रातों में।
जलाना पड़ता है खुद को ही रौशनी के लिए।
किसी के प्यार की मासूमियत ने रोक लिया।
कभी जो घर से निकलते हैं खुदकुशी के लिए।
इकबाल तन्हा