ग़ज़ल
मेरे महबूब मेरे प्यार के जज़्बात हो तुम
पहली मां है मेरी दूसरी मुलाकात हो तुम
ना जाने कितने अच्छे काम किए होंगे मैंने
उन्हीं सकर्मो से मिली सौगात हो तुम
जब – जब कहीं देखूं मैं प्रतिबिंब अपनी
आंखों से छलकती हुई बरसात हो तुम
मेरे महबूब अब तुम्हें लौट कर आना होगा
मै दिन रात जो सोचूं वो खयालात हो तुम
लिखता हूं सनम प्रेम की अनमोल कहानी
महबूब के खत में मोहब्बत की बात हो तुम
तकती हैं निगाहें मेरी हर वक़्त रास्ता तेरा
चलते वक्त के सामने रुके से हालात हो तुम
जाया नहीं करना खत अपने प्यार का जाना
दिया बुझने तक ज्योति का विश्वास हो तुम
ज्योति प्रकाश राय