ग़ज़ल
कुछ इधर,कुछ उधर कई देखे
इक मुसाफ़िर ने घर कई देखे
रास आया न एक भी हमको
हमने रस्ते मगर कई देखे
आदमी एक भी न मिल पाया
हमने कितने ही तो नगर देखे
चाह में जिसकी मैं मरी जाती
वो भी लेके मेरी खबर देखे
शीला गहलावत सीरत
चण्डीगढ़
कुछ इधर,कुछ उधर कई देखे
इक मुसाफ़िर ने घर कई देखे
रास आया न एक भी हमको
हमने रस्ते मगर कई देखे
आदमी एक भी न मिल पाया
हमने कितने ही तो नगर देखे
चाह में जिसकी मैं मरी जाती
वो भी लेके मेरी खबर देखे
शीला गहलावत सीरत
चण्डीगढ़