ग़ज़ल
रोज झांसा नया एक झांसे के बाद।
अब दिलासा न दो इस दिलासे के बाद।।
तिश्नगी प्यार की अब किसी को नहीं।
राह तकता रहा एक प्यासे के बाद।।
दर्द से तो कभी के हम बुत हो गए।
हाल पूछा है तुमने जमाने के बाद।।
साथ मेरा निभाया था अबतक मगर।
क्यों गिराने लगे हो उठाने के बाद।।
अब जरूरत नहीं कि अलग से पिएं।
मय उतरती नहीं है पिलाने के बाद।
गोपाल पाठक,बरेली(उप्र)