ग़ज़ल
चलो फिर हालात ए मुल्क बदलते हैं
फिर इक नये सवालात पर उलझते हैं
कभी कम होती नहीं क्यों दुश्वारियां
चलो इन दुश्वारियों को ही बदलते हैं
मुश्किल नहीं है रस्तगारी ए अज़ाब
चलो अक़ीद इरादों की राह चलते हैं
बदलना दूसरों को मुश्किल है जनाब
चलो फिर खुद को ही हम बदलते हैं
अशोक सोनी
भिलाई ।