ग़ज़ल
चलते -चलते जिन्दगी ठहर गई
धुंध भरे रास्ते थे जहां भी नज़र गई
जो जहां है सकते के आलम में है
जब कोरोना होने की ख़बर गयी
अभी ख़ुदा का शुक्र ही कर रहे थे
कि सर पर रखी ताज उतर गई
आंचल फैलाये तेरे दरबार में रब
करम कर जाने कितनी पहर गई
नूरफातिमा खातून “नूरी”
३०/३/२०२०