ग़ज़ल
‘बेरहम वक्त’
याद मन को आज बहलाती नहीं
दर्द की ग़ज़लें सनम भाती नहीं।
बेरहम था वक्त छीना शहर भी
लापता पहचान मुस्काती नहीं।
प्रीत की मैं वेदना कैसे सहूँ
बेरुखी मुझसे सही जाती नहीं।
देखती हूँ जब ख़तों को खोलकर
अश्क में भीगा उन्हें पाती नहीं।
ज़िंदगी में तुम ख़िज़ाँ ऐसे बने
अब गुलाबों पर फ़िज़ा आती नहीं।
ज्य़ादती की हम शिकायत क्या करें
मौत ‘रजनी’ आज सहलाती नहीं।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’