ग़ज़ल
एक बहुत छोटी बह्र की ग़ज़ल
ہے خطا है खता
دو سزا दो सज़ा
جب ملا जब मिला
بس گلہ बस गिला
وہ ہوا वो हुआ
بے وفا बेवफा
جانتا जानता
سب خدا सब खुदा
نیکیاں नेकियां
بھول جا भूल जा
یاد رکھ याद रख
ہر خطا हर खता
ضد نہ کر ज़िद न कर
مان جا मान जा
شکریہ शुक्रिया
آپ کا आपका
ارشاد عاطفؔ “इरशाद “आतिफ़ अहमदाबाद