ग़ज़ल
——–+ग़ज़ल+——–
आपस में भाइयों को लड़ाने से क्या मिला
काँटों के पेड़ दिल में उगाने से क्या मिला
सुन कर जो कर दे अनसुनी इस दिल के दर्द को
फिर दर्द हाक़िमों को बताने से क्या मिला
शामिल है जिसके ख़ूँन में धोखे की चाशनी
उसको सबक़ वफ़ा का पढाने से क्या मिला
मन्दिर बनाया जिसको सँवारा था प्यार से
उस घर में आग बोलो लगाने से क्या मिला
मरहम नहीं नमक जो लगाता हो ज़ख़्म पर
उस बेरहम को ज़ख़्म दिखाने से क्या मिला
ताबीर जिसकी कोई भी “प्रीतम” न बन सकी
आँखों में ऐसे ख़्वाब सजाने से क्या मिला
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)