ग़ज़ल
ग़ज़ल ***
क़फ़स में बंद पंछी को उड़ाना भी ज़रूरी है।
कि घुटती ज़िन्दगी में सांस आना भी ज़रूरी है।
करो तुम बागबां बनकर के रखवाली ख़ियाबां की
कि मुरझाए गुलों में जान लाना भी ज़रूरी है।
ग़मों की धूप है बादल सुखों के भी तो बरसेंगे
विदाई रात की हो भोर आना भी ज़रूरी है ।
कभी ऐसा मिले कोई जिसे मेरी ज़रूरत हो
भरोसा जहन में उसके जगाना भी ज़रूरी है।
बचा लो हाथ देकर डूबते को तुम सहारा दो
कि सीरत में तेरी ईमान आना भी ज़रूरी है।
रखो उतने ही नाते जो कि तुमको रास आ जाएं
बनाते हो अगर रिश्ता निभाना भी ज़रूरी है।
नहीं कोई किसी का है कहे ‘रंजन’ सुनो तुमसे
नकाबों से अजी चेहरा सजाना भी ज़रूरी है।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना