ग़ज़ल
मरे सभी जज़्बात,ज़िंदगी हार गई।
आई कैसी रात ,ज़िंदगी हार गई।।1
घूम रहे हैवान,लिए कामुकता को,
बिगड़े हैं हालात,ज़िंदगी हार गई।।2
जब फैला अँधियार,गिद्ध से टूट पड़े,
नोचा नारी गात,ज़िंदगी हार गई।।3
आओ कैंडल मार्च,निकालें मुद्दा है,
कहाँ छुपे हो तात ,ज़िंदगी हार गई।।4
संवेदन से हीन,दिखावा दुनिया में,
कब होगी बरसात,ज़िंदगी हार गई।।5
शब्द हुए हैं मौन ,वेदना चीख रही,
सूखे हैं जलजात,ज़िंदगी हार गई।।6
कैसे हो विश्वास,किसी की बातों पर,
करें सभी उत्पात ,ज़िंदगी हार गई।।7
डाॅ बिपिन पाण्डेय