ग़ज़ल
हसने के बहाने से ही रोएं आंखे,
मगर आंसू पोछने को पास में एक रुमाल तो रक्खा जाए।
घर के मंदिर में रक्खो भगवान की मूरत तुम,
मगर दिल के मंदिर को मां के बग़ैर ना रक्खा जाए।
गर जाना है तो जाओ महफ़िल से दूर तुम,
मगर,दिल के दरवाज़े को अपनों के लिए बंद ना रक्खा जाए।
दुश्मनों को मारने के लिए सरहद पर वो हैं मौजूद,
उनकी शांति को उनकी बुजदिली ना समझा जाए।
देश में हर तरफ खेलो सियासत के खेल तुम,
मगर भूखे बच्चों को रोटी के बग़ैर ना रक्खा जाए।