ग़ज़ल
बुलाएँ दर पुराने
हमारे घर पुराने
नए हैं आजतक भी
हज़ारों डर पुराने
पुराने चाँद तारे
नहीं अम्बर पुराने
हुई ताज़ा हैं यादें
वो ख़त पढ़कर पुराने
सताता आइना भी
हमें कहकर पुराने
नए सपने हमारे
मगर बिस्तर पुराने
अनूप
बुलाएँ दर पुराने
हमारे घर पुराने
नए हैं आजतक भी
हज़ारों डर पुराने
पुराने चाँद तारे
नहीं अम्बर पुराने
हुई ताज़ा हैं यादें
वो ख़त पढ़कर पुराने
सताता आइना भी
हमें कहकर पुराने
नए सपने हमारे
मगर बिस्तर पुराने
अनूप