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1 Feb 2017 · 1 min read

ग़ज़ल

बुलाएँ दर पुराने
हमारे घर पुराने
नए हैं आजतक भी
हज़ारों डर पुराने
पुराने चाँद तारे
नहीं अम्बर पुराने
हुई ताज़ा हैं यादें
वो ख़त पढ़कर पुराने
सताता आइना भी
हमें कहकर पुराने
नए सपने हमारे
मगर बिस्तर पुराने
अनूप

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