ग़ज़ल
जिसकी आँखों का मर गया पानी
समझो उसका उतर गया पानी
याद आई जो उस सितमगर की
मेरी आँखों में भर गया पानी
आशियाना डुबा के सपनों का
मुझको बर्बाद कर गया पानी
इक भी मोती न हाथ आएँगे
ज़िन्दगी से अगर गया पानी
भीगा दामन है आज पत्थर का
जब इधर से उधर गया पानी
बर्फ़ के जिस्म से था लिपटा पर
देख गर्मी सिहर गया पानी
तिश्नगी में तड़प रहा “प्रीतम”
जाने अब किस सफ़र गया पानी
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती(उ०प्र०)