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27 Jun 2019 · 1 min read

ग़ज़ल

. —-ग़ज़ल—-

ग़मों से जो भी लड़ना जानता है
वही क़िस्मत बदलना जानता है

जो सागर में उतरना जानता है
रुख़े तूफ़ां बदलना जानता हैजो

जो सच्चा होता है आशिक़ जहां में
न वादे से मुक़रना जानता है

वही होता चहेता है सभी का
छुपा कर ग़म जो हँसना जानता है

करे माँ बाप की ख़िदमत जो दिल से
ग़मों से वह उबरना जानता है

उसे क्या फ़र्क पर को काटने से
वो साहस से भी उड़ना जानता है

खुदा पर है यक़ीं जिसको भी “प्रीतम”
वो ग़र्दिश में सँवरना जानता है

प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती(उ०प्र०)

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