ग़ज़ल
——- ग़ज़ल ——-
जहां में क्यों कोई हँसता नहीं है
दिलों में प्यार का दरिया नहीं है
वफ़ा के क्यों बुझे दीपक हैं दिल में
मुझे ये कोई समझाता नहीं है
लबों पर तिश्नगी शोहरत की सबके
यहाँ है कौन जो प्यासा नहीं है
बढ़ाता है नहीं अपना क़दम जो
वो मंज़िल को कभी पाता नहीं है
करे माँ बाप की ख़िदमत जो दिल से
कोई उससे यहाँ अच्छा नहीं . है
दुआओं का ख़ज़ाना मिल गया जिसको
किसी दौलत का वो भूखा नहीं है
लुटाओ प्यार के मोती ऐ “प्रीतम”
ये वो दौलत है जो घटता नहीं है
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)