ग़ज़ल
——–ग़ज़ल——-
वो है ख़ुदा जो जहां में चला रहा है मुझे
नहीं तो सारा ज़माना मिटा रहा है मुझे
किसी के काम न आई ये ज़िन्दगी मेरी
यही है दर्द जो अन्दर से खा रहा है मुझे
तू फेर लेता है मुझसे निगाह जब अपनी
वो कौन है जो यहाँ पर बुला रहा है मुझे
हुई है कौन सी मुझसे ख़ता बता दो ज़रा
बिठा के पलकों पे फिर तू गिरा रहा है मुझे
तमाम आफ़तें घेरे हुई हैं दुनिया की
ये प्यार माँ का जो इनसे बचा रहा है मुझे
मिला दे मेरे सितमग़र से ऐ मेरे मौला
जो मेरे ख़्वाब में आकर सता रहा है मुझे
ज़ुबान बनके जो मुँह में सभी के रहता है
पतंग बना के वो “प्रीतम” उड़ा रहा है मुझे
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)