ग़ज़ल 19
सोकर है जब उठता चाँद
अर्श पे तब है उगता चाँद
दुल्हन की बिंदिया जैसा
अम्बर पे है सजता चाँद
छोटे छोटे बच्चों को
उनका मामा लगता चाँद
इश्क़ में पागल आशिक़ को
माशूका सा दिखता चाँद
जो दो दिन से भूखा है
उसको रोटी लगता चाँद
शब हो जाती है तारीक
बादल में जब छुपता चाँद
तन्हाई में हिज़्र की शब
साथ ‘शिखा’ के जगता चाँद