ग़ज़ल
एक प्रयास
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कभी झूठ जग से छुपाया न जाए।
छुपा कर दिलों में दबाया न जाए।
लगी चोट दिल पे किसी के सितम से
उसे पीर बनके दिखाया न जाए।
अगर ढूँढ़ लो तुम खुशी ज़िंदगी में
कभी दुश्मनी को निभाया न जाए।
मिले आँसुओं का समंदर सुखा दो
पलों को खुशी के चुराया न जाए।
उदासी अधर पे सदा मुस्कुराए
दबा दर्द अपना सुनाया न जाए।
बनो गर सहारा सभी मुफ़लिसी का
कहीं बेबसों को सताया न जाए।
जपो नाम प्रभु का हरो दुख पराये
सहारा बनो दिल दुखाया न जाए।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
महमूरगंज, वाराणसी(उ. प्र.)
संपादिका- साहित्य धरोहर