ग़ज़ल
——ग़ज़ल—–
तुम्हारे वास्ते दुनिया भुलाए बैठे हैं
ये रोग इश्क़ का दिल को लगाए बैठे हैं
तुम्हारे पाँव में काँटा न चुभने पाएगा
चले भी आओ कि हम दिल बिछाए बैठे हैं
ख़ुशी जहां की मयस्सर तुम्हे हो ऐ दिलबर
तुम्हारे ग़म को हम अपना बनाए बैठे हैं
हमारी मंज़िले-मक़सूद हो तुम्ही जानां
तुम्ही पे जान ये अपनी लुटाए बैठे हैं
हमारी रात ग़ुज़रती तुम्हारे ख़्वाबों में
तुम्हे ही अपनी नज़र में बसाए बैठे हैं
वो कौन शाम है जिस दिन मिलोगे तुम हमसे
ये बज़्म प्यार का कब से सजाए बैठे हैं
कभी तो आओ ऐ “प्रीतम” हमारी गुलशन में
हज़ारों ख़ुशियों के गुल हम खिलाए बैठे हैं
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)