ग़ज़ल
—– ग़ज़ल ——-
ख़ुश हुआ कौन और ग़मज़दा कौन है
दुनिया ख़ुदग़र्ज़ है सोचता कौन है
मेरे ख़्वाबों में ये आ रहा कौन है
चुपके से हो गया दिलरुबा कौन है
ख़त्म एहसास तन्हाइयों के हुए
हमसफ़र बनके संग चल पड़ा कौन है
खुशबू-ए-इश्क़ से है मोअत्तर फ़िज़ां
मेरे पहलू में ये सो गया कौन है
खिल उठी है कली गुल भी हँसने लगे
बाग में मुस्कुराने लगा कौन है
क्यों न देखूँ मुहब्बत की नज़रों से मैं
इस जहां में भला आप सा कौन है
चाहे मंज़िल मिले या कि रुसवाइयाँ
यार उल्फ़त में ये सोचता कौन है
तोड़ कर हमको फिर कैसे सँवरोगे तुम
इक हमारे सिवा आइना कौन है
झूठ पर तालियाँ बजते “प्रीतम” सदा
सच का करता यहाँ सामना कौन है
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)