ग़ज़ल
मासूमों का कातिल है तू
ओछा है औ जाहिल है तू
हरकत से बाज़ न आएगा
धूर्त बदी की मंजिल है तू
जिसमें मौतें ही बहती हों
उस दरिया का साहिल है तू
धोखे से तू करता घातें
कायरता का काइल है तू
जाती जो सीधे दोजख़ को
एक बदनुमा मंज़िल है तू
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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