ग़ज़ल
सुना जन्नत में रूहों को..,फरिश़्ते खुद मिलाते हैं..!!
***रस्में जुदाई***
चलो उम्मीद का जलता,
दिया मिलकर बुझाते हैं..!
चली तुम जाओ डोली में,शहर हम छोड़ जाते हैं..!!
गिले शिक़वे करेंगे अब,
नहीं एक दूसरे से हम,
दिये जो जिन्दगी ने ग़म.,चलो मिलकर उठाते हैं..!!
हमारे जज़्ब हैं आँसू,
तुम्हारी भीगी हैं पलकें,
यही दस्तूर ए उल्फत है,चलो मिलकर निभाते है..!!
हथेली में यहाँ लिख दी,
अगर उसने जुदाई तो,
सुना जन्नत में रूहों को ..,फरिश़्ते खुद मिलाते हैं..!!
इबादत ग़र बुरी होती,
मोहब्बत लोग करते क्यों,
हकीक़त ये किसी “वीरान”,को मिलकर बताते है..!!
कॉपीराइट@यशवन्त”वीरान”