ग़ज़ल
चलो आज कर दें उजाला यहीं पर
था टूटा किसी का सितारा यहीं पर
किसी ने तो खोया है बेटा यहीं पर
कोई उम्र भर का सहारा यहीं पर
वतन के ज़ियाले लहू देके अपना
किया लाल फिर से तिरंगा यहीं पर
मचा देंगे क़ुहराम दुश्मन के घर में
दिए ख़ौफ़ का जो नज़ारा यहीं पर
नहीं भूल पाएँ गे ये ज़िन्दगी भर
उठा अम्न का था ज़नाज़ा यहीं पर
ज़मीं की ये ज़न्नत थी कश्मीर लेकिन
हुआ नर्क का भी ठिकाना यहीं पर
सुकूँ दिल को “प्रीतम” मिले जब अदू को
कि मुल्क़े अदम का वो रस्ता यहीं पर
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)