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18 Feb 2019 · 1 min read

ग़ज़ल

ग़ज़ल

दुश्मन से भी अब छेड़ दो तक़रार अनोखी
या तो मेरे हाथों में दो तलवार अनोखी

ख़ामोशी से कुछ बात बनेगी न यहाँ पर
कहती है क़लम भर के ये हुँकार अनोखी

दुश्मन तो करे वार मगर ये तो बताओ
कब तक करें हम लोग ये मनुहार अनोखी

धरती जो किया लाल है वीरों के लहू से
अब देख हमारी भी तू ललकार अनोखी

भूगोल बदल देंगे गुनहगारों तुम्हारा
हम को तो तेरे सिर की है दरक़ार अनोखी

तुमने जो उठाई है अभी दिल में ऐ “प्रीतम”
अब वो न कभी गिर सके दीवार अनोखी

प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)

209 Views
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